अजीब सी हवा चली - डॉ पवन मिश्र

पञ्चचामर छन्द
 
अजीब सी हवा चली,
समाज छिन्न भिन्न है।

पुकार सृष्टि की सुनो,
दिखे कि तू अभिन्न है।

न चाँद है न चांदनी,
चकोर तो विभिन्न हैं।

प्रभो करो कृपा सदा,
सभी मनुष्य खिन्न हैं।

        ✍ डॉ पवन मिश्र

शिल्प- चार- चार पर यति समेत लघु गुरु की आठ आवृत्ति

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